Saturday 26 July 2014

"थी ख़ून से लथ-पथ काया, फ़िर भी बन्दूक उठा कर

"थी ख़ून से लथ-पथ काया, फ़िर भी बन्दूक उठा कर
दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गँवा कर
जब अन्त समय आया तो, कह गए कि अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफर करते हैं"
इन चार पँक्तियों में सीमित एक सैनिक की असीमित ज़िन्दगी को निभाने वाले तमाम कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि। कई लड़े, कई घायल हुए, कई शहीद हुए - लेकिन सब जीते, देश जीता, भारत जीता। कारगिल विजय दिवस की शुभकामनाएं।

लाठीचार्ज के खिलाफ छात्रों का प्रदर्शन, दरभंगा में रोकी ट्रेन







विद्या सागर
पटना. गुरुवार को छात्रों के विधानसभा मार्च के दौरान पुलिस के लाठी चार्ज के विरोध में छात्र संगठनों ने शनिवार को पूरे राज्य में चक्का जाम की घोषणा की। राज्य भर में इस आंदोलन का व्यापक असर दिखा। शनिवार को सुबह से ही छात्र संगठनों के जाम के कारण कई शहरों में पब्लिक को फजीहत झेलनी पड़ी। छात्र लाठीचार्ज के दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे। वहीं छात्रों ने दरभंगा रेलवे स्टेशन पर नई दिल्ली सुपर फास्ट ट्रेन को भी रोक दिया था।
राजधानी में तीन मेगा ब्लॉक
छात्र संगठनों के इस बंद का मुख्य असर तीन मार्गों पर रहा। इसमें पटना विश्वविद्यालय मुख्य द्वार पर छात्रों ने सबसे अधिक देर तक रास्ता बंद रखा। यहां रास्ता साफ कराने को लेकर पुलिस और छात्रों के बीच झड़पें भी हुई। दूसरी ओर चक्का जाम की शुरुआत अनीसाबाद से हुई जहां देर तक छात्रों ने जाम लगाए रखा। इस संबंध में एआईएसएफ के राज्य सचिव सुशील कुमार ने बताया कि हमारी मांगों पर कार्रवाई तो दूर कोई सुन भी नहीं रहा है। शांति मार्च के दौरान पुलिस का रवैया नकारात्मक रहा और बेवजह लाठीचार्ज किया गया। सुशील ने बताया कि आंदोलन अभी बंद नहीं हुआ है। चक्का जाम के बाद आगे की रणनीति पर रविवार को चारों संगठनों की बैठक में लिया जाएगा।
राजभवन गया डेलीगेशन
छात्रों के प्रदर्शन का असर पब्लिक पर तो व्यापक हुआ लेकिन उनकी मांगों पर कार्रवाई की अभी संभावना कम ही दिख रही है। शनिवार को प्रदर्शन के बाद जिला प्रशासन की टीम छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल को राजभवन तक ले गई जहां छात्रों की मुलाकात राज्यपाल के अपर सचिव सलाउद्दीन खान से हुई। यहां से छात्रों को कार्रवाई के नाम पर आश्वासन ही मिल सका क्योंकि राज्यपाल अभी बिहार से बाहर हैं। छात्रों के डेलीगेशन में एआईएसएफ के सुशील कुमार, विकास, आइसा के सुधीर कुमार, नवनीत, छात्र राजद से राज सिन्हा, गौतम आनंद और एआईडीएसओ से सरोज कुमार सुमन शामिल थे।
10.00 बजे - चितकोहरा मोड़
चितकोहरा फ्लाईओवर सुबह ऑफिस आॅवर शुरू होते ही जाम हो गया। फ्लाईओवर से क्रॉस कर अनीसाबाद की ओर जाने वाली सड़क छात्रों ने ब्लॉक कर दी। इस ब्लॉक के कारण फ्लाईओवर पर एयरपोर्ट की ओर से आने वाली गाड़िया जाम में फंस गई। दो घंटे से अधिक वक्त तक चले इस जाम के दौरान राजभवन जाने वाली सड़क तक गाड़िया फंसी रही।
10.30 बजे - कॉलेज ऑफ कॉमर्स
कॉलेज ऑफ कॉमर्स के ठीक सामने में छात्रों के प्रदर्शन के कारण ओल्डबाइपास रोड पूरी तरह ब्लॉक हो गया। छात्रों ने किसी भी व्हीकल के आने जाने से रोक दिया। हालांकि एंबुलेंस सेवाएं व स्कूल की गाड़ियों को छात्रों ने रास्ता दिया। यहां जाम के कारण राजेंद्रनगर टर्मिनल तक यात्रियों को पहुंचने में भी परेशानी हुई। दूसरी ओर सर्विस लेन का इस्तेमाल करने के कारण कॉलोनी की सड़कें भी जाम हो गई।
11.00 बजे - अशोक राजपथ
पटना विश्वविद्यालय मुख्यालय छात्रों के प्रदर्शन का केंद्र था। यहां प्रदर्शन शुरू हुआ तो धीरे धीरे पूरा अशोक राजपथ ब्लॉक हो गया। महेंद्रू से कारगिल चौक तक जाने के सभी रास्तों को छात्रों ने बंद करा दिया था। इस दौरान जाम जब अधिक लगने लगा तो पुलिस ने सख्ती कर हटाने की कार्रवाई कर दी। इसके बाद देर तक पुलिस व छात्रों के बीच झड़प होती रही। हालांकि पुलिस का बल प्रयोग सिर्फ छात्रों को हटाने तक सीमित रहा।

सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे शहीदों के गांव


विद्यासागर
पटना। 26 जुलाई 1999 का दिन देश के लिए एक ऐसा गौरव लेकर आया था जब सारी दुनिया के सामने विजय का बिगुल बजाया। इस दिन भारतीय सेना ने करगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरशेन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था। कारगिल युद्ध में एकीकृत बिहार के 18 जवानों ने देश की रक्षा के लिए हंसते हुए अपनी शहादत दी थी।एकीकृत बिहार के बटवारे के बाद बिहार और झारखंडवासी उनके शहादत पर हर वर्ष गर्व महसूस करते हैं। लेकिन इन शहीदों के परिवार वालों की स्थित दिन प्रति दिन बद से बदतर होती जा रही है। युद्ध के बाद तत्कालिन केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उस वक्त शहीद के परिवार के आर्थिक, सामाजिक हालत सुधार के लिए पेट्रोल पंप, कुकिंग गैस और कैरोसीन एजेंसी देने का वादा किया था। तत्कालिन लालू-राबड़ी सरकार ने भी शहीदों के परिजनों के प्रति अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करते हुए सरकारी सुविधाएं देने की धोषणा की थी। वक्त बितने के साथ ही सरकारी उदाशिनता के कारण शहीदों के परिवार की आर्थिक व सामाजिक हालात दिन-प्रतिदिन खराब होते चले गये। सरकार के नुमाइंदे जनप्रतिनिधि भी शहीद के परिजनों को भूलते जा रहे हैं। सरकारी उदासिनता का आलम यह है कि औरंगाबाद के रफीगंज प्रखंड के बंचर गांव निवासी शहीद सिपाही शिवशंकर प्रसाद गुप्ता का शहरवासियों के सहयोग से लगे जिला मुख्यालय के सब्जीमंडी के पास प्रतिमा स्थल के चारो ओर कुडे का अंबार लगा है। प्रतिमा स्थल के आसपास अतिक्रमण लगा है। नगर परिषद की उदासिनता इसी से समझी जा सकती है कि शहीद का प्रतिमा धुल गदरे से पटा है। स्थल की साफ-सफाई भी नहीं करायी जाती है। शहीद का गांव भी सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। शहीद के पैतृक गांव में न तो सड़क है ना बिजली। स्वास्थ्य केन्द्र भी हैं। शिक्षा के नाम पर सीर्फ प्राथमिक विद्यालय है। शहीद के विधवा को गैस एजेंसी मिला है। परिवार की सुध लेने कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आते हैं। वहीं पटना जिले के बिहटा के शहीद नायक गणोश प्रसाद यादव का गांव सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। कमोबेस यहीं स्थित बिहार-झारंखड के उन सभी शहीदों के परिजनों और गांव की है जो सरकारी सुविधाओं से महरूम हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जिस जोश और जज्बे के साथ राजधानी पटना के ह्दय स्थली गांधी मैदान के पास करगिल चौक बना यह भी सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। करगिल चौक स्थित शहीद- ए-करगिल स्मृति पार्क में न तो बिजली कनेक्शन हैं ना ही इसकी साफ सफाई होती है। इस युद्ध में बिहार-झारखंड के 18 वीर योद्धा शहीद हुए थे जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए बसी रहेंगी।