Saturday 26 July 2014

सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे शहीदों के गांव


विद्यासागर
पटना। 26 जुलाई 1999 का दिन देश के लिए एक ऐसा गौरव लेकर आया था जब सारी दुनिया के सामने विजय का बिगुल बजाया। इस दिन भारतीय सेना ने करगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरशेन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था। कारगिल युद्ध में एकीकृत बिहार के 18 जवानों ने देश की रक्षा के लिए हंसते हुए अपनी शहादत दी थी।एकीकृत बिहार के बटवारे के बाद बिहार और झारखंडवासी उनके शहादत पर हर वर्ष गर्व महसूस करते हैं। लेकिन इन शहीदों के परिवार वालों की स्थित दिन प्रति दिन बद से बदतर होती जा रही है। युद्ध के बाद तत्कालिन केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उस वक्त शहीद के परिवार के आर्थिक, सामाजिक हालत सुधार के लिए पेट्रोल पंप, कुकिंग गैस और कैरोसीन एजेंसी देने का वादा किया था। तत्कालिन लालू-राबड़ी सरकार ने भी शहीदों के परिजनों के प्रति अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करते हुए सरकारी सुविधाएं देने की धोषणा की थी। वक्त बितने के साथ ही सरकारी उदाशिनता के कारण शहीदों के परिवार की आर्थिक व सामाजिक हालात दिन-प्रतिदिन खराब होते चले गये। सरकार के नुमाइंदे जनप्रतिनिधि भी शहीद के परिजनों को भूलते जा रहे हैं। सरकारी उदासिनता का आलम यह है कि औरंगाबाद के रफीगंज प्रखंड के बंचर गांव निवासी शहीद सिपाही शिवशंकर प्रसाद गुप्ता का शहरवासियों के सहयोग से लगे जिला मुख्यालय के सब्जीमंडी के पास प्रतिमा स्थल के चारो ओर कुडे का अंबार लगा है। प्रतिमा स्थल के आसपास अतिक्रमण लगा है। नगर परिषद की उदासिनता इसी से समझी जा सकती है कि शहीद का प्रतिमा धुल गदरे से पटा है। स्थल की साफ-सफाई भी नहीं करायी जाती है। शहीद का गांव भी सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। शहीद के पैतृक गांव में न तो सड़क है ना बिजली। स्वास्थ्य केन्द्र भी हैं। शिक्षा के नाम पर सीर्फ प्राथमिक विद्यालय है। शहीद के विधवा को गैस एजेंसी मिला है। परिवार की सुध लेने कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आते हैं। वहीं पटना जिले के बिहटा के शहीद नायक गणोश प्रसाद यादव का गांव सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। कमोबेस यहीं स्थित बिहार-झारंखड के उन सभी शहीदों के परिजनों और गांव की है जो सरकारी सुविधाओं से महरूम हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जिस जोश और जज्बे के साथ राजधानी पटना के ह्दय स्थली गांधी मैदान के पास करगिल चौक बना यह भी सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। करगिल चौक स्थित शहीद- ए-करगिल स्मृति पार्क में न तो बिजली कनेक्शन हैं ना ही इसकी साफ सफाई होती है। इस युद्ध में बिहार-झारखंड के 18 वीर योद्धा शहीद हुए थे जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए बसी रहेंगी।

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