Sunday 19 October 2014

छात्र और राजनीति

छात्र और राजनीति

विद्या सागर
छात्र और राजनीति दोनों दो अलग-अलग शब्द हैं। लेकिन लोगों को छात्र के साथ राजनीति शब्द से संबंध बड़ा अटपटा लगता है। आये दिन समाचार पत्रों में देश के चोटी के नेताओं के विचार मिलता है जिसमें कहा जाता है कि छात्रों को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए। देश के चोटी के कई नेता इस विषय पर अनेक बाद विचार प्रकट कर चुके हैं। कई बार उन्होंने खीझ के साथ कहा भी है कि राजनीति में भाग लेने से हमारे छात्र योग्य स्नातकों से वंचित रह जाते हैं। आम लोगों-नेताओं का कहना है कि हमारे देश  को अभी सुयोग्य डाॅक्टर, इंजीनियर और अन्य कर्मचारियों की अत्यन्त आवश्कता हैं। इसी प्रकार की बहुत सारी बातें विद्यार्थियों के संबंध में कही जाती है और यह भी कहा जाता है कि राजनीति के झमेले में पड़कर विद्यार्थी अनुशासनहीन होते हैं। उपरोक्त बातों में एक पक्ष के लोग विद्यार्थियों को राजनीति  करने से मना करते हैं। वहीं अगर इसका दूसरा पक्ष देखते हैं जो अति गंभीर व विचारणीय है। आज भारत स्वतंत्र है। प्रजातान्त्रिक शासन-प्रणाली ही स्वतंत्र भारत की विषेषता है। अपने देष में अपना शासन है। स्वतंत्र भारत को डाॅक्टर, इंजीनियर, शासक आदि की तो निःसंदेह बहुत बड़़ी आवष्यकता है, पर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि की भी जरूरत है। शासन सुचारू रूप से चलाने के लिए सुयोग्य अधिकारियांे की जितनी जरूरत है, उससे ज्यादा जरूरत  सुयोग्य शासक की है। यह निर्विवाद सत्य हैं कि जनतंत्र भारत में दलीय सरकार ही रहेगी, चाहे जिस पार्टी की सरकार क्यों न हो। यह भी सच है कि प्राचीनकाल में भी राज्य  और देष का संचालन बुद्धिमान वर्ग के द्वारा ही होता रहा है। मुट्ठी-भर पढ़े-लिखे  और कुषल राजनीतिज्ञों के साथ में पूरे देष का भार रहता है और वे जैसा चाहते हैं, ’देष की नीति’ निर्धारित करते है। अब प्रष्न यह उठता है कि ये सूत्र  संचालक आखिर कहां से आते हैं। उत्तर स्पष्ट है कि आज के जो छात्र हैं वे ही कल देष के भाग्य-विधाता बनेंगे, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनेगें। अब लोग स्वंय विचार करें कि किस अंष तक छात्रों को राजनीति से दूर रहना युक्तिसंगत हैं। एक दूसरी बात है कि देष के अंदर की धटनाओं से प्रत्येक व्यक्ति प्रभावित होता है। वह अपने को अछूता नहीं रख सकता है भले ही मात्रा में कमी-बेषी हो सकती है। जो जितनी समझदारी रखता है उसकी बुद्धि की जितनी पहुंच है और जिसने जिस कोटि का अध्ययन किया है, उसी अनुपात में किसी संवेदनषील मन पर देष की घटनाओं और राजनीतिक वातावरण का प्रभाव पड़ेगा। छात्र बीच की कड़ी है जो न तो भोली-भाली जनता की कोटि में है और न शासक की कोटि में, बल्कि इन दोनों के बीच की कड़ी हैं। दूसरी बात यह है कि छात्र युवक भी होते है और यह युवावस्था सबसे अधिक भावना प्रधान एवं संवेदनषील अवस्था होती है। किसी भी धटित घटना से जितना शीध्र एक युवक प्रभावित होगा, उतना शीध्र एक बालक या एक वृद्ध नहीं हो सकता हो सकता।  अतः देष का राजनीतिक वातावरण हमारे युवा छात्रों को आकर्षित करता रहता है वह उसकी ओर खिंचते है तो अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। आखिर छात्र अपनी समस्याओं को लेकर संर्धष नहीं करेंगे तो उनकी समस्याओं को लेकर कौन संर्धष करेगा। आज विभिन्न राजनीतिक दल छात्र संगठन बना कर छात्रों को गुमराह करने का कार्य कर रहें है ऐसे में छात्रों को वैसे संगठनों से दूर रह कर ऐसे संगठन के साथ काम करना चाहिए जो उनके लिए संर्धष कर रहा हो।

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